आल्हा शैली
आल्हा शैली
(मानववाद)
मात्रा भार 16/15
बन समाज का प्रिय सहभागी, रख मन में सहयोगी भाव।
बनो एकता का अनुरागी, दृश्यमान हो मधुर स्वभाव।
सींच सभी को प्रेम नीर से, रहे घृणा का सदा अभाव।
द्वेष भाव का बनो विरोधी, बनकर बहो पवन -सद्भाव।
मानव बनकर जीना सीखो, धोते रह दुखियों के घाव।
पीड़ित भव है बहुत डरावन, पार करो सब को बन नाव।
हरित वृक्ष बनकर छा जाओ, देना सबको अमृत छाँव
बन जाना तुम औषधि उनको, फटे हुए हैं जिनके पाँव।
दबे हुए को सदा सँवारो, देना उनको हार्दिक प्यार।
सतत जगाओ समतावादी, सुंदर नैतिक शिष्ट विचार।
जीवन आशापूर्ण सदा हो,फूँक निराशों में नित जान।
दिग्भ्रमितों को राह दिखाओ, देते रहना समुचित ज्ञान।
अग्रदूत की रहे भूमिका, चमत्कार का हो विस्तार।
सहज बनाओ उत्तम रचना, शुचिता का करना संचार।
Renu
25-Jan-2023 03:53 PM
👍👍🌺
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